AdministrationState

जिला प्रशासन, रेडक्रॉस और रोटरी क्लब के सौजन्य से सीपीआर, चोकिंग, इमरजेंसी रिस्पांस कार्यक्रम का हुआ आयोजन – नवादा ।

डीडीसी ने दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का किया उद्घाटन

रवीन्द्र नाथ भैया ।

समाहरणालय डीआरडीए के सभागार में जिला प्रशासन, रेडक्रॉस तथा रोटरी क्लब के सौजन्य से सीपीआर, चोकिंग, इमरजेंसी रिस्पांस का प्रदर्शन और प्राथमिक चिकित्सा पुतलों पर प्रदर्शनों के साथ संवादात्मक एवं व्यावहारिक सत्र का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का उद्घाटन डीडीसी प्रियंका रानी द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया। मेदांता हॉस्पिटल पटना के डायरेक्टर डॉ किशोर झुनझुनवाला द्वारा सीपीआर का प्रशिक्षण दिया गया। उन्होंने बताया कि सीपीआर का मतलब है कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन।
यह भी एक तरह की प्राथमिक चिकित्सा यानी फर्स्ट एड है, जब किसी पीड़ित को सांस लेने में दिक्कत हो या फिर वो सांस न ले पा रहा हो और बेहोश हो जाए तो सीपीआर से उसकी जान बचाई जा सकती है। बिजली का झटका लगने पर, पानी में डूबने पर तथा दम घुटने पर सीपीआर से पीड़ित को राहत पहुंचाया जा सकता है। हार्ट अटैक यानी दिल का दौरा पड़ने पर तो सबसे पहले और समय पर सीपीआर दे दिया जाय तो पीड़ित की जान बचाने की संभावना कई गुणा बढ़ जाती है। सीपीआर देने की प्रक्रिया के संदर्भ में उन्होंने बताया कि सीपीआर क्रिया करने में सबसे पहले पीड़ित को किसी ठोस जगह पर लिटा दिया जाता है और प्राथमिक उपचार देने वाला व्यक्ति उसके पास घुटनों के बल बैठ जाता है। उसके बाद उसकी नाक और गला चेक कर यह सुनिश्चित किया जाता है कि उसे सांस लेने में कोई रुकावट तो नहीं है। जीभ अगर पलट गयी है तो उसे सही जगह पर उंगलियों के सहारे लाया जाता है। सीपीआर में मुख्य रुप से दो काम किए जाते हैं।
पहला छाती को दबाना और दूसरा मुंह से सांस देना जिसे माउथ टु माउथ रेस्पिरेशन कहते हैं। पहली प्रक्रिया में पीड़ित के सीने के बीचोबीच हथेली रखकर पंपिंग करते हुए दबाया जाता है। एक से दो बार ऐसा करने से धड़कनें फिर से शुरू हो जाएंगी। पंपिंग करते समय दूसरे हाथ को पहले हाथ के उपर रखकर उंगलियो से बांध लें अपने हाथ और कोहनी को सीधा रखें, अगर पम्पिंग करने से भी सांस नहीं आती और धड़कने शुरू नहीं होतीं तो पम्पिंग के साथ मरीज को कृत्रिम सांस देने की कोशिश की जाती है। ऐसा करने के लिए हथेली से छाती को एक-दो इंच दबाएं, ऐसा प्रति मिनट में 100 बार करें।


सीपीआर में दबाव और कृत्रिम सांस का एक खास अनुपात होता है। 30 बार छाती पर दबाव बनाया जाता है तो दो बार कृत्रिम सांस दी जाती है। छाती पर दबाव और कृत्रिम सांस देने का अनुपात 30.02 का होना चाहिए। कृत्रिम सांस देते समय मरीज की नाक को दो उंगलियों से दबाकर मुंह से सांस दी जाती है।
ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि नाक बंद होने पर ही मुंह से दी गयी सांस फेफड़ों तक पहुंच पाती है। सांस देते समय यह ध्यान रखना है कि फर्स्ट एड देने वाला व्यक्ति लंबी सांस लेकर मरीज के मुंह से मुंह चिपकाए और धीरे-धीरे सांस छोड़ें, ऐसा करने से मरीज के फेफड़ों में हवा भर जाएगी। इस प्रक्रिया में इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि जब कृत्रिम सांस दी जा रही है तो मरीज की छाती उपर नीचे हो रही है या नहीं। यह प्रक्रिया तब तक चलने देनी है जब तक पीड़ित खुद से सांस न लेने लगे। जब मरीज खुद से सांस लेने लगे, तब यह प्रकिया रोकनी होती है।
सीपीआर अगर किसी बच्चे को देनी है तो विधि में थोड़ा सा बदलाव होता है। बच्चों की हड्डियों की शक्ति बहुत कम होती है, इसलिए दबाव का विशेष ध्यान रखा जाता है। अगर एक साल से कम बच्चों के लिए सीपीआर देना हो तो सीपीआर देते वक्त ध्यान रखे 2 या 3 उंगलियों से ही छाती पर दबाव डालें और छाती पर दबाव तथा कृत्रिम सांस देंने का अनुपात 30.02 ही रखें।
सभागार में उपस्थित विभाग के पदाधिकारी एवं कर्मी सीपीआई के बारे में जाना एवं डॉ झुनझुनवाला के द्वारा सभी कर्मियों से प्रैक्टिकल करवाया गया।
मौके पर जिला स्तरीय कार्यालय के प्रधान एवं कर्मी मौजूद थे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button