रवीन्द्र नाथ भैया ।
व्यवहार न्यायालय ने बालू राजस्व घोटाले के सरकारी गवाहों का गवाही नहीं देने के आरोप में वेतन रोकने का आदेश जारी किया है। इसके जद में अररिया एसपी अशोक कुमार सिंह भी आये हैं। आदेश की सूचना के बाद उन्होंने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए नवादा पुलिस को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
उन्होंने बताया कि न्यायालय में गवाही देनी है इसकी सूचना किसने दी। जब सूचना ही नहीं मिली तो फिर गवाही देता कैसे? सूचना देने की जिम्मेदारी पुलिस की होती है। क्योंकि न्यायालय गवाहों को सूचना देने के पुलिस के पास भेजती है और पुलिस की जिम्मेदारी है कि समय पर गवाह को न्यायालय में उपस्थित कराये। जब स्थानांतरित अधिकारी को सूचना ही नहीं मिलेगी तो फिर गवाह देने जायेगा कौन? इसके लिए न्यायालय नहीं, नवादा पुलिस जिम्मेदार है।
बता दें न्यायालय समन, वारंट, इश्तिहार, कुर्की का आदेश एसपी कार्यालय को भेजती है, जहां से संबंधित थाना को भेजा जाता है। आदेश का अनुपालन कराना संबंधित थाने की जिम्मेदारी है। लेकिन ऐसा देखा जा रहा है कि थाने से गलत प्रतिवेदन देकर बगैर ता मिला कराये न्यायालय को वापस भेज दिया जाता है और संबंधित व्यक्ति को परेशान किया जाता है।
इस प्रकार के एक नहीं कई उदाहरण है।
घटना 20 जून की है। अकबरपुर पुलिस ने न्यायालय के एक मामले में अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर एक पत्रकार को गिरफ्तार कर लिया। उनके पास किसी ने व्हाट्सएप पर न्यायालय से जारी इश्तिहार भेजा था जो गोविन्दपुर थाने का था। गोविन्दपुर थाना इश्तिहार को बगैर तामिला कराये वापस न्यायालय को लौटा दिया था। ऐसे में गिरफ्तारी का कोई औचित्य नहीं था।
उन्हें थाली थाने के हवाले कर दिया गया। न वहां कोई कागजात था न गोविन्दपुर में सो एसपी से थाली थानाध्यक्ष ने दिशा निर्देश मांगा।
पुलिस की किरकिरी होते देख न्यायालय भेजने का आदेश दिया। न्यायालय ने तत्काल जमानत देते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि इश्तिहार तामिला का कोई स्वतंत्र साक्ष्य नहीं है। इससे स्पष्ट है कि थानाध्यक्ष ने थाने में बैठकर ही समन व इश्तिहार तामिला का झूठा प्रतिवेदन न्यायालय भेजकर गुमराह किया।
अब जब कुछ इसी प्रकार का आरोप अररिया एसपी ने उठाया है तो एकबार फिर जिला पुलिस की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह लगा है, जिसका जबाब एसपी को देना होगा।