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अद्भुत राजनेता,साहित्यकार और संस्कृति-पुरुष थे डा पूर्णेंदु नारायण सिन्हा – पटना |

९७वीं जयंती पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुआ समारोह, कवियों ने दी काव्यांजलि

रवि रंजन |

पटना, अपने समय में बिहार के, विशेषकर राजधानी के सांस्कृतिक-धड़कन बने रहे राजनेता और साहित्य-सेवी डा पूर्णेंदु नारायण सिन्हा का व्यक्तित्व अद्भुत था। औपचारिकता से सर्वथा दूर का संबंध रखनेवाले डा सिन्हा आत्मीय संबंधों में विश्वास करते थे। जीवन-भर इसका निर्वाह भी किया। उनके कारण पटना में उत्सवों की झड़ी लगी रहती थी। ‘कौमुदी-महोत्सव’ हो या ‘महामूर्ख-सम्मेलन’ या फिर कला, संगीत और नाट्य के समारोह, सबके अगुआ डा सिन्हा होते थे। उत्सवों और संस्थाओं की गिनती नहीं की जा सकती थी, जिनसे उनके सरोकार थे। सभी सारस्वत कार्यों और सेवाओं के प्राण थे डा पूर्णेंदु।
यह बातें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में डा पूर्णेंदु की ९७वीं जयंती पर आयोजित समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि एक राजनेता को कैसा होना चाहिए, डा पूर्णेंदु उसके उत्तर, उदाहरण और आदर्श थे। साहित्य, कला और संगीत से बढ़ रही दूरी आज के राजनेताओं को समाज और मनुष्यता से दूर करती जा रही है।
समारोह का उद्घाटन करते हुए, पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि, भारतीय संस्कृति को बल प्रदान करने वाले राजनेता डा पूर्णेंदु नारायण सिन्हा को उनके सद्गुणों के साथ स्मरण कारने के लिए उनकी जयंती पर समारोह आयोजित कर साहित्य सम्मेलन ने बड़ा कार्य किया है। अपने बड़ों का स्मरण करना समाज का पुनीत कर्तव्य है।
बिहार हिन्दी प्रगति समिति के अध्यक्ष कवि सत्यनारायण ने कहा कि जिन लोगों ने छठे दशक में पटना की गतिविधियाँ नहीं देखी, वे पूर्णेंदु बाबू को नहीं जान सकते। उनके एक हाथ में राजनीति और दूसरे हाथ में साहित्य और संस्कृति थी। वे उन लोगों में थे, जो अपना घर जलाकर दूसरों को रौशनी देते हैं। साहित्य सम्मेलन से उनका गहरा संबंध था। वे इसके आयोजनों में बढ़चढ़ कर भाग लेते थे।
सुप्रसिद्ध सनायुरोग विशेषज्ञ पद्मश्री डा गोपाल प्रसाद ने कहा कि पूर्णेंदु बाबू बिहार के गौरव-पुरुषों में से एक थे। इसी नाम से एक पुस्तक आयी थी, जिसमें देशरत्न डा राजेंद्र प्रसाद, बाबू श्रीकृष्ण सिंह, अनुग्रह बाबू आदि महापुरुषों के साथ पूर्णेंदु बाबू का भी नाम था और उनके विषय में सुंदर आलेख था।
बिहार के अपर पुलिस महानिदेशक जितेन्द्र सिंह गंगवार, बिहार और झारखंड के मुख्य डाक महाध्यक्ष अनिल कुमार, भारतीय प्रशासनिक सेवा से अवकाश प्राप्त अधिकारी सुधीर कुमार राकेश, डा पूर्णेंदु के पुत्र और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के पूर्व निदेशक प्रवीण कुमार, मगध विश्वविद्यालय में प्राचार्य रहे प्रो निर्मल कुमार श्रीवास्तव, एम्स,पटना में चिकित्सक डा संजीव कुमार, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधुवाला वर्मा तथा पारिजात सौरभने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ कवि सत्यनारायण ने इन पंक्तियों से किया कि “ख़ुशबुओं का अता पता रखिए/ मौसम जैसा भी हो मन हरा रखिए” । वरिष्ठ गीतकार आचार्य विजय गुंजन, डा मेहता नगेंद्र सिंह, शायरा तलत परवीन, जीतेन्द्र मनस्विन, चितरंजन भारती, सिद्धेश्वर, अरविन्द कुमार सिंह, डा अर्चना त्रिपाठी, सचिन बैजनाथ, सदानन्द प्रसाद, ई अशोक कुमार, श्रीकांत व्यास, अरविंद अकेला,डा सुषमा कुमारी, अरविंद कुमार वर्मा, संजय श्रीवास्तव, रविशंकर वरियार आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी सुमधुर काव्य-रचनाओं से डा पूर्णेंदु को काव्यांजलि अर्पित की। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
वरिष्ठ प्राध्यापक डा संजीव नाथ, विश्वरुपम, कर्मवीर प्रसाद, डा मनोज कुमार मिश्र, सुधीर कुमार राकेश, ऋषि राज सिन्हा, शशिभूषण सिंह, राजीव रंजन प्रसाद, शीला संधवार, सुजीत कुमार वर्मा, विनोद कुमार लाभ, संदीप कमल, नीतू चौहान, कुमार गंगेश गुंजन, डा संजय कुमार संथालिया, बाँके बिहारी साव समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

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