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छठ पूजा हमारी सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक: -‘मगही रत्न’ श्री राम रतन प्रसाद सिंह ‘रत्नाकर’ – नवादा |

रवीन्द्र नाथ भैया |

विश्व मगही परिषद्, नई दिल्ली के तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय मगही चौपाल का 151वाँ सम्मेलन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। सम्मेलन सायंकाल 6 बजे आयोजित किया गया, जिसमें ‘मगह के छठ पूजा में श्रद्धाभाव’ विषय पर गहन विचार-विमर्श हुआ।
इस अवसर पर नवादा (बिहार) के प्रतिष्ठित साहित्यकार, पत्रकार और मगही मनीषी ‘मगही रत्न’ श्री राम रतन प्रसाद सिंह ‘रत्नाकर’ मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। वरिष्ठ कवि-पत्रकार ‘मगही रत्न’ श्री राम रतन प्रसाद सिंह ‘रत्नाकर’ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि छठ पूजा हमारी सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। छठ पूजा, जो बिहार, झारखंड, और पूर्वी उत्तर प्रदेश में अत्यधिक श्रद्धा के साथ मनाई जाती है, सूर्य देव और छठी मैया की आराधना का पर्व है। इस पर्व के माध्यम से हमारी परंपराएं, सांस्कृतिक मूल्य और सामाजिक एकता सुदृढ़ होती है। छठ पूजा के अवसर पर प्रदर्शित होने वाला समर्पण, तपस्या और श्रद्धा हर व्यक्ति के जीवन में एक प्रेरणा का स्रोत बनता है।
कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री लालमणि विक्रांत की देखरेख में संपन्न हुआऔर कार्यक्रम का संचालन, तकनीकी सहयोग और अतिथियों का स्वागत अंतरराष्ट्रीय महासचिव प्रोफेसर डॉ. नागेंद्र नारायण ने किया।
इस सजीव वेबिनार में देश-विदेश से तीन दर्जन से अधिक विश्व मगही परिषद् के कार्यकारिणी सदस्य, साहित्यकार, कवि, पत्रकार, और मगही प्रेमी सम्मिलित हुए।
विशिष्ट अतिथि के रूप में भागलपुर जिले से सुप्रसिद्ध साहित्यकार और कवि श्री राजकुमार जी ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई और उन्होंने आयोजित मगही कवि गोष्ठी में दो दोहा का वाचन करते हुए कहा कि – पुलिस किरपा छट्ठी माय के, खिलल हके चौपाल।
मचा रहल संसार में, तभिये ‘राज’ धमाल।।
मगही परिषद’ पटल पर, ‘राज’ मना छठ पर्व।
बता रहल ई पर्व हे, महा मगध के गर्व।।
इस अवसर पर नवादा के प्रख्यात हिंदी-मगही साहित्यकार प्रोफेसर शिवेंद्र नारायण सिंह ने कहा कि छठ पर्व भारतीय लोक आस्था का एक महान पर्व है, जो सूर्य देव के प्रति मानव की श्रद्धा, विश्वास और निष्ठा को दर्शाता है। सूर्य देवता, जिन्हें ऊर्जा, तेज और जीवन का स्रोत माना गया है, की उपासना करते हुए इस पर्व में लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की कामना करते हैं। सूर्य देव के नियमित पूजन से जीवन में सुख-समृद्धि और कल्याण के मार्ग खुलते हैं।
शिक्षिका कुमारी ज्योत्सना ने छठी मैया की महिमा की चर्चा करते हुए
परिवारजनों से प्रताड़ित एक महिला व्रती की सूर्य भगवान से की गई विनती से संबंधित एक छठ गीत प्रस्तुत किया जिसका बोल है-
“जोड़ा लियो सूपा लेके तिरिया मनावै लाल। उगऽ न सुरूजदेव लेहो न अरगिया लाल।”
इस पर्व की विशेषता यह है कि इसमें जलाशयों के किनारे, उदय और अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देकर लोग अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। प्रोफेसर सिंह ने इस अवसर पर कहा कि छठ पर्व केवल संतान सुख की ही नहीं, बल्कि संपूर्ण प्रकृति के प्रति मानव की कृतज्ञता और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक भी है। यह पर्व स्वच्छता, अनुशासन और सामूहिकता की भावना को प्रकट करता है, जिसमें परिवार और समाज के सभी वर्ग मिलकर सामूहिक रूप से पूजन करते हैं। बाढ़ निवासी
साहित्यकार जैनेन्द्र प्रसाद रवि’, ने कहा कि
छठ मैय्या की महिमा अपार हो सब बोले परबैतिया।
सबसे पावन औ बढियां त्योहार हो,सब बोले परबैतिया।
इस पावन अवसर पर कार्यक्रम में पटना से समाजसेवी और साहित्यकार पूजा ऋतुराज, डॉ. श्वेता चंद्र, शेखपुरा से साहित्यकार जयनंदन सिंह, डॉ. किरण कुमारी शर्मा, ममता कुमारी, बंदना कुमारी , नवादा से नीता सिंह पुतुल गया से पूनम कुमारी ,लखीसराय से डॉ. राजेंद्र राज और डॉ राजीव रंजन सहित अन्य गणमान्य हस्तियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
सफल आयोजन के लिए अंतरराष्ट्रीय महासचिव प्रोफेसर डॉ. नागेंद्र नारायण ने सभी अतिथियों और भाग लेने वाले सदस्यों का धन्यवाद ज्ञापित किया और बताया कि विश्व मगही परिषद् इस प्रकार के आयोजनों के माध्यम से मगही भाषा, साहित्य और संस्कृति को विश्व मंच पर लाने का निरंतर प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि छठ पर्व जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा कर हमारी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने और अगली पीढ़ी को इससे जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।
प्रोफेसर डॉ. नागेंद्र नारायण ने विश्व मगही परिषद् के आगामी तीन कार्यक्रमों मगही पाठशाला , मगही के थाती और मगह के विरासत के बारे में बताया ।


राजेंद्र राज की पुस्तक ” कभी जब उ मुस्कुराबे” का लोकार्पण विश्व मगही परिषद के अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष लालमणि विक्रांत व मगही रत्न रामरतन सिंह रत्नाकर ने सम्मिलित रूप से करते हुए कहा कि यह एक अद्वितीय साहित्यिक रचना है, जो मगही भाषा और संस्कृति की गहराई को उजागर करती है। इस कृति में लेखक ने अपनी ग़ज़लों के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं को,4 विशेषकर ग्रामीण जीवन, सामाजिक मुद्दों और मानवीय भावनाओं को संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया है।
पुस्तक की भाषा सरल और दिल को छू लेने वाली है, जो पाठकों को मगही संस्कृति के करीब लाती है।
डॉ. राजेंद्र राज की लेखनी में स्थानीय बोली की मिठास और ग्रामीण परिवेश की सहजता झलकती है। उनकी ग़ज़लों न केवल साहित्यिक रूप से प्रभावशाली हैं, बल्कि उनमें समाज के प्रति एक गहन दृष्टिकोण भी प्रस्तुत होता है।
पुस्तक ” कभो जब उ मुस्कुराबे” के लोकार्पण मगही भाषा के साहित्य प्रेमियों के लिए एक अनमोल कृति है, जो उनके हृदय में अपने गांव, अपनी माटी और अपनी संस्कृति के प्रति प्रेम और गर्व का भाव जगाती है।

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