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विधि महाविद्यालय में हुआ मध्यथस्ता जागरूकता कार्यक्रम – नवादा ।

रवीन्द्र नाथ भैया ।
बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकार, पटना तथा जिला एवं सत्र न्यायाधीश सह अध्यक्ष, जिला विधिक सेवा प्राधिकार, आशुतोष कुमार झा के निर्देश के आलोक में विधि महाविद्यालय नवादा में लीगल एवर्नेस प्रोग्राम ऑन द टॉपिक ’’प्रि-इंस्टीच्यूशन मेडिएशन एण्ड सेटल्मेंट इन कॉमर्सियल डिस्प्यूट्स’’, मेडिएशन एवर्नेस प्रोग्राम एवं एवर्नेस प्रोग्राम ऑन द प्रॉसेस ऑफ मेडिएशन ऐज एडीआर मेकेनिज्म का आयोजन किया गया। कार्यकम को संबोघित करते हुए उमेश्वर प्रसाद सिंह, डिफेंस अधिवक्ता लीगल एड डिफेंस कॉन्सिल ने बताया कि मध्यस्थता विवादों को निपटाने की सरल एवं निष्पक्ष आधुनिक प्रक्रिया है। इसके द्वारा मध्यस्थ अधिकारी दबाव रहित वातावरण में विभिन्न पक्षों के विवादों का निपटारा करते हैं। सभी पक्ष अपनी इच्छा से सद्भावना पूर्ण वातावरण में विवाद का समाधान निकालते हेैं तथा उसे सभी पक्ष अपने विवाद को सही दृष्टिकोण से मापते हैं और वह समझौता सभी पक्षों को मान्य होता है, उसे अपनाते हैं।
इस पद्वति के द्वारा विवादों का जल्द से जल्द निपटारा होता है जो बिना खर्च होता है। यह मुकदमों के झंझट से मुक्त है। साथ ही साथ न्यायालय पर बढ़ते मुकदमें का बोझ भी कम होता है।
मध्यस्थता अधिकारी निष्पक्ष मध्यस्थता के लिए पूर्णतः प्रशिक्षित होता है। सभी पक्षों को उनके विवादों का हल निकालने में मदद करते हैं। मध्यस्थता एक ढॉंचागत प्रक्रिया है। इसकी अपनी कार्यप्रणाली है। इसके अनुसार मध्यस्थ अधिकारी मध्यस्थता की प्रक्रिया को सभी पक्ष को अवगत कराता है। उन्हें प्रक्रिया के नियम एवं गोपनीयता के बारे में भी बताता है।
मध्यस्थ अधिकारी पक्षों से उनके विवाद के प्रति जानकारी प्राप्त करता है तथा विवाद के निपटारे के अनुकूल वातावरण तैयार करता है इस प्रक्रिया में संयुक्त सत्र एवं पृथक सत्र द्वारा हर पक्ष से बात करते हैं एवं दोनों पक्षों को साथ बैठाकर मध्यस्थता का कार्य किया जाता है।
उक्त सत्र में दोनों पक्ष अपने हर मुद्दे को मध्यस्थ अधिकारी के समक्ष रखते हैं जिसे गोपनीय रखा जाता है।
उक्त सत्र के माध्यम से मध्यस्थ अधिकारी विवाद की जड़ तक पहूॅंचता है। मध्यस्थ अधिकारी दोनों पक्षेां को राजी खुशी से सुलह हेतु तैयार करवाते हैं तथा विवाद का निवारण करवाते हैं तथा सभी पक्षों से पुष्टि भी करवाते हैं। इस समझौते को लिखित रूप में अंकित किया जाता है जिसपर सभी पक्ष हस्ताक्षर करते हैं। मध्यस्थता के नहीं होने से पक्षकारों को समय की बर्बादी, मानसिक एवं शारीरिक शांति भंग एवं धन की हानि, आपसी घृणा, झूठे अहम को बढ़ावा एवं असंतोष जैसी हानियॉं होती है।
रिटेनर अधिवक्ता ने मध्यस्थता प्रक्रिया के लाभ के बारे में बताया कि इस आधुनिक प्रक्रिया द्वारा विवाद का अविलंब एवं शीघ्र समाधन, समय तथा खर्चे का किफायत, न्यायालयों में चक्कर लगाने से राहत, अत्यधिक सरल एवं सुविधाजनक, विवाद का हमेशा के लिए प्रभावी एवं सर्वमान्य समधान, समाधान में पक्षों की सहमति को महत्व , अनौपचारिक, निजी तथा पूर्णतः गोपनीय प्रक्रिया, समाजिक सदभाव कायम करने में सहायक, आदि लाभ पक्षकारों को मिलता है।
व्यवसायिक विवादों में कोर्ट जाने के पहले ’’प्रि-इंस्टीच्यूशन मेडिएशन एण्ड सेटल्मेंट इन कॉमर्सियल डिस्प्यूट्स’’, के तहत पक्षकार लाभ उठा सकते हैं। व्यवहार न्यायालय में तीन व्यवसायिक न्यायालय कार्यरत है। सब जज प्रथम एवं जिला जज का न्यायालय व्यवसायिक न्यायालय है तथा जिला जज न्यायालय अपीलीय न्यायालय के रूप में भी कार्य करता है।
उमेश्वर प्रसाद सिंह, डिफेंस अधिवक्ता लीगल एड डिफेंस कॉन्सिल ने एडीआर मेकेनिज्म के बारे में बताया।
उन्होंने बताया कि यह एक आधूनिक प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से वादों का निपटारा सुलह के आधार पर किया जाता है। इसके अन्तर्गत मध्यस्थता, केन्द्र लोक अदालत इत्यादि आते हैं।
कार्यक्रम में उमेश्वर प्रसाद सिंह, डिफेंस अधिवक्ता लीगल एड डिफेंस कॉन्सिल, पारा विधिक स्वयं सेवक रामानुज कुमार, श्री राजेन्द्र प्रसाद अधिवक्ता, पैनल गया, मनीष पंकज मिश्रा, श्री अमन जैन अधिवक्ता श्याम किशोर मिश्रा, उप प्राचार्य नवादा विधि महाविद्यालय एवं लोक अदालत के पेशकार सुशील कुमार उपस्थित थे।

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