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दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद छोटू आज किसी हुनर का मोहताज नहीं – नालंदा ।

DM बनने की है चाहत

रवि रंजन ।

नालंदा : कहते है इन्शान में जीने और कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो इंसान किसी का मोहताज नही होता । हैम बताने जा रहे है एक  ऐसे ही युवक की कहानी ज8सने अपने दोनों हाथ नही होने के बाबजूद अपने जीवन को बेहतर बनाने में लगे है और दूसरे दिव्यांग के लिये प्रेरणा भी है ।

जी हाँ दिव्यांग छोटू की जिसका दोनो हाथ नही है उसके बाबजूद क्रिकेट का बल्ला ऐसे घूमता है जैसे सम्मान्य क्रिकेटर । हम बात कर रहे हैं 17 वर्षीय छोटू कुमार की , जो जन्म से दिव्यांग है दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद आज वह किसी हुनर का मोहताज नहीं, नाम से ही आसपास के लोग पहचान जाते हैं। उसकी विकलांगता होने के वावजूद उसकी प्रतिभा आज ईश्वरीय वरदान से कम नहीं हैं, छोटू की प्रतिभा में ना उम्र ना जाति बाधक बन रहीं हैं।

 

वो कहते हैं ना “जिनके हौसले ऊंचे होते हैं, उनकी मंज़िलें खुद रास्ता देती हैं।” गिरियक प्रखंड के रामनगर मरकट्टा गांव निवासी लालो देवी ने कभी नहीं सोचा था कि वे एक दिव्यांग लड़के को जन्म देंगी, लेकिन भगवान की मर्जी के आगे किसकी चली है। सबसे छोटे बेटे होने का कारण उसका नाम घर में छोटू रख दिया गया। दिव्यांग बेटे के जन्म के वावजूद आज छोटू अपने परिवार में खुशियां देने का काम कर रहा है। छोटू की दृढ़ इच्छा शक्ति के कारण आज विकलांगता उसके आड़े नहीं आ रही हैं। बचपन से ही छोटू क्रिकेट का शौकीन था । अक्सर वह क्रिकेट के मैदान पर जाकर बैठा रहता था बच्चों को खेलते देख उसके मन में भी खेलने की जिज्ञासा होती थी । लेकिन दोनों हाथ नहीं होने के कारण उसे कोई खेलने नहीं देता था । पर छोटू रुकने वाला कहा था , घर के किनारे ही छोटू लकड़ी के बैट लेकर क्रिकेट की प्रैक्टिस करता रहता था। क्रिकेट ग्राउंड दूर होने के कारण उसे दिव्यांग समझ कोई खेल के मैदान तक नहीं ले जाता था वह पैदल ही 2 किलोमीटर तक सफर पूरा करता था। आने जाने में उसे दिक्कत होती थी तो उसने साइकिल चलाना भी सीख गया फिर धीरे-धीरे दूसरों से मांग कर मोटरसाइकिल भी सीख गया छोटू के हौसले बुलंद थे। फिर छोटू ने पढ़ाई करने के भी ठानी और आज वह 12 वीं बोर्ड का एग्जाम की तैयारीया में जुटा हुआ है । पिता पुदीन मांझी खेत में मजदूरी करके परिवार का किसी प्रकार से भरण पोषण करते हैं।बचपन में छोटू कुमार पैरों के सहारे जमीन पर शब्दों को उकेरने लगा।आज छोटू पावापुरी मोड पर 12 वीं की कोचिंग करता है बचपन में जमीन पर उकेरी गई लाइन आज कागजों में सुंदर अक्षर बनकर तैयार हो गए हैं जिन्हें देख हर कोई दंग रह जाता है दोनों पैरों से छोटू पहले कागज के पन्ने को पलटता हैं फिर पैरों से ही पेन उठाकर धीरे-धीरे लिखते लगता है।


पढ़ाई का खर्च ट्रैक्टर चला कर पूरा करता है
छोटू कुमार के परिवार के आर्थिक आमदनी उतनी नहीं थी जिससे 12 वीं की पढ़ाई में उसकी  मदद हो पाती । अपने एक दोस्त को ट्रैक्टर चलाता देखा उसने ट्रैक्टर चलाना भी सीख लिया फिर धीरे-धीरे ट्रैक्टर के जरिए मिट्टी उठाउ जैसे काम कर थोड़े बहुत पैसे भी कमाने लगा जिससे उसकी पढ़ाई में मदद होने लगी।

छोटू ने बताया कि जब उसे होश आया तो अपने दिव्यांग होने पर अफसोस भी आता था । लेकिन वह मेहनत करने से पीछे नहीं भगा ,वहीं मां के प्रोत्साहन के कारण उसने क्रिकेट खेलना सीखा , फिर ट्रैक्टर उसके बाद साइकिल चलाना । शिक्षको ने भी काफी प्रोत्साहित किया , शिक्षकों की मेहनत के कारण आज वह 12 वीं की क्लास में पहुंचा जिसका एग्जाम अगले महीने है उसने कहा कि उसका सपना है यूपीएससी एक्जाम पास कर डीएम बने ।

दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद छोटू आज किसी हुनर का मोहताज नहीं है उसकी चाहत है डीएम बनने की।छोटू आज दिव्यांगो के लिए बना प्रेरणा का स्त्रोत बना हुआ है यदि सरकार और समाज के द्वारा उसे सहयोग किया गया तो एक उम्मीद की किरण है कि अच्छे अधिकारी बन अन्य दिव्यांगों के लिये प्रेरणा बनेगा छोटू ….

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