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राजबल्लभ यादव की रिहाई, विभा देवी की नाराज़गी और संभावित जदयू की सदस्यता – नवादा ।

नवादा की पांच विधानसभा सीटों का जातीय और राजनीतिक गणित

एनडीए बनाम महागठबंधन की स्थिति
-आने वाले विधानसभा चुनाव पर असर
-राजबल्लभ यादव की रिहाई से नवादा की राजनीति में भूचाल, पांचों सीटों पर बदल सकता है समीकरण

रवीन्द्र नाथ भैया ।

जिले की राजनीति हमेशा से अप्रत्याशित मोड़ों और जातीय समीकरणों पर आधारित रही है। अब एक बार फिर से बड़े बदलाव की आहट सुनाई दे रही है। हाल ही में पटना हाईकोर्ट से बरी होकर बेउर जेल से बाहर आए पूर्व मंत्री और कद्दावर नेता राजबल्लभ प्रसाद यादव ने जिले की सियासत में नई हलचल पैदा कर दी है।


शनिवार देर रात उनके नवादा पहुंचने के साथ ही जिले की राजनीति अचानक गर्मा गई। समर्थकों में उत्साह है, विरोधियों में बेचैनी, और आम मतदाताओं के बीच चर्चा का बाजार गर्म है कि उनकी सक्रियता से आखिर आने वाले विधानसभा चुनाव का समीकरण क्या होगा?
-पत्नी विभा देवी की नाराज़गी और नये राजनीतिक कयास:-


राजबल्लभ यादव की गैरहाजिरी में उनकी पत्नी विभा देवी को नवादा विधानसभा से टिकट देकर जिताया गया था। वर्तमान में वे राजद विधायक हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से उनका अपने दल के नेतृत्व से तालमेल बिगड़ा हुआ है। वे कई बार सार्वजनिक रूप से भी असंतोष जता चुकी हैं।
इसी बीच राजबल्लभ यादव की रिहाई ने सियासी अटकलों को और हवा दे दी है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि यादव दंपत्ति जदयू का रुख कर सकते हैं। अगर यह कयास सच साबित हुआ तो न केवल नवादा बल्कि पूरे जिले की राजनीति का गणित बदल जाएगा।
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य :– एनडीए बनाम महागठबंधन
जिले की मौजूदा राजनीति में तस्वीर साफ है –
एनडीए :- भाजपा + जदयू + हम + लोजपा (रामविलास)
महागठबंधन : -राजद+ कांग्रेस + वामदल
नवादा की राजनीति इन्हीं दो ध्रुवों के इर्द-गिर्द घूम रही है। लेकिन स्थानीय नेताओं का व्यक्तिगत प्रभाव और जातीय समीकरण भी यहां निर्णायक भूमिका निभाती रही है ।
-पांचों विधानसभा सीटों का गणित
1. नवादा विधानसभा
वर्तमान विधायक: विभा देवी, राजद
स्थिति:- यादव और मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में हैं।
अगर विभा देवी राजद में बनी रहती हैं तो यह सीट महागठबंधन के लिए सुरक्षित दिख सकती है। लेकिन अगर वे और राजबल्लभ यादव जदयू में चले जाते हैं तो पूरा यादव वोट बैंक खिसक सकता है और एनडीए को बड़ी मजबूती मिल सकती है।
2. वारिसलीगंज विधानसभा
वर्तमान विधायक:- अरुणा देवी (भाजपा)
यह सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है। अरुणा देवी ने यहां लगातार अपनी पकड़ बनाए रखी है।
हालांकि यादव-मुस्लिम समीकरण अगर एकजुट हुआ तो महागठबंधन यहां कड़ी चुनौती पेश कर सकती है।
राजबल्लभ यादव की सक्रियता से विपक्ष का मनोबल बढ़ सकता है।
3. गोविंदपुर विधानसभा
वर्तमान विधायक:- मोहम्मद कामरान
यह सीट मुस्लिम और यादव मतदाताओं के सहारे लंबे समय से विपक्षी खेमे के पास रही है।
राजबल्लभ यादव की वापसी से कामरान को संगठनात्मक मजबूती मिल सकती है। लेकिन अगर यादव वोटों का बंटवारा जदयू की ओर हुआ तो यहां भी मुकाबला रोचक होगा।
4. रजौली विधानसभा
वर्तमान विधायक:- प्रकाशवीर
यहां आदिवासी, यादव और मुस्लिम मतदाता निर्णायक हैं। राजबल्लभ यादव के सक्रिय होने से विपक्ष को फायदा हो सकता है, परन्तु जदयू या बीजेपी के लिए यह सीट पूरी तरह छोड़ी हुई नहीं है।
आदिवासी मत किस ओर झुकता है, यह तय करेगा कि रजौली का नतीजा किसे मिलेगा।
5. हिसुआ विधानसभा
वर्तमान विधायक:- नीतू देवी (कांग्रेस)
उन्होंने भाजपा के अनिल सिंह को हराकर यह सीट महागठबंधन की झोली में डाली थी।
लेकिन कांग्रेस की संगठनात्मक कमजोरी और भाजपा की पुरानी पकड़ इस सीट को हर चुनाव में हॉटस्पॉट बना देती है। अगर राजबल्लभ यादव जदयू में जाते हैं तो यहां विपक्षी वोटों में बिखराव होगा और भाजपा के लिए अवसर पैदा होगा।
जातीय समीकरण और असर:-
जिले में यादव मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक मानी जाती है। यादव समाज के साथ-साथ मुस्लिम, दलित और महादलित वोट भी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
अगर यादव मतदाताओं का झुकाव राजबल्लभ यादव के साथ जदयू की ओर होता है → तो एनडीए की स्थिति जिले में बहुत मजबूत हो सकती है। अगर वे महागठबंधन में बने रहते हैं → तो राजद और कांग्रेस के लिए यादव-मुस्लिम समीकरण का लाभ मिल सकता है।
भाजपा का कोर वोटर (ऊपरी जाति और व्यवसायी वर्ग) पहले से ही संगठित है, इसलिए वोटों का ध्रुवीकरण एनडीए को और मजबूत बना सकता है।
विपक्षी खेमे के लिए बड़ी चुनौती:-
महागठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती अब यही है कि क्या वे राजबल्लभ यादव और विभा देवी को अपने साथ बनाए रख पाएंगे? अगर वे टूटते हैं तो नवादा में महागठबंधन का संतुलन पूरी तरह बिगड़ जाएगा।
कांग्रेस की हिसुआ सीट और राजद की गोविंदपुर-रजौली सीट पर भी सीधा असर पड़ेगा।
भाजपा और जदयू की रणनीति:-
एनडीए के लिए यह सुनहरा मौका है।
भाजपा पहले से वारिसलीगंज और हिसुआ में मजबूत है। जदयू अगर यादव समाज में सेंध लगाने में सफल हो गया तो जिले की सभी सीटों पर एनडीए को बढ़त मिल सकती है।
राजबल्लभ यादव जैसे नेता का समर्थन जदयू के लिए “गेमचेंजर” साबित हो सकता है।
संभावित चुनावी परिदृश्य:-
1. अगर यादव दंपत्ति महागठबंधन में रहते हैं → नवादा, गोविंदपुर और रजौली में विपक्ष की स्थिति मजबूत होगी।
2. अगर वे जदयू में शामिल होते हैं → यादव वोटों का बड़ा हिस्सा एनडीए की ओर चला जाएगा, जिससे महागठबंधन की नींव हिल जाएगी।
3. भाजपा → पहले से मजबूत दो सीटों के अलावा अन्य पर भी बढ़त बना सकती है
राजबल्लभ यादव की रिहाई ने नवादा की राजनीति को हिला दिया है। यह रिहाई महज एक नेता की वापसी नहीं बल्कि पूरे जिले के जातीय और राजनीतिक संतुलन का पुनर्गठन है।
पत्नी विभा देवी की नाराज़गी और संभावित जदयू जॉइनिंग ने इसे और नाटकीय बना दिया है।
नवादा की पाँचों सीटें अब सीधी लड़ाई का मैदान बन चुकी हैं।
आगामी विधानसभा चुनाव में यह तय होगा कि क्या राजबल्लभ यादव एनडीए के “तुरुप के इक्का” बनेंगे या महागठबंधन के “मजबूत स्तंभ”।
एक बात तय है—उनकी रिहाई ने जिले की राजनीति को फिर से सुर्खियों में ला दिया है और अब हर राजनीतिक दल की निगाहें यहीं टिकी रहेगी।

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