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कानून की जानकारी नहीं या सत्य को छिपाने में लगे हैं अधिकारी? – नवादा |

रवीन्द्र नाथ भैया |

कानून की जानकारी नहीं या जानबूझकर सत्य को छिपाने में लगे हैं पुलिस अधिकारी? मामला पुलिस महकमे के एक पूर्व थानाध्यक्ष से जुड़ा है। वैसे यह पहला मामला है ऐसी भी बात नहीं है। इसके पूर्व भी पुलिस अधिकारी द्वारा ऐसा किया जा चुका है।
क्या है मामला:- जिले के पूर्व पकरीबरावां थानाध्यक्ष अजय कुमार ने राजनीतिक व आपराधिक लोगों के दबाव से तंग आकर स्थानांतरण के लिए अभ्यावेदन दिया था। जिले के कुछ अखबारों व सोशल मीडिया पर इससे संबंधित खबरें चलायी गयी थी। हांलांकि किसी पुलिस ऑफिसर्स ने इसकी पुष्टि नहीं की थी।
किया गया स्थानांतरण:- मगध प्रक्षेत्र के आइजी ने अजय कुमार का तबादला गया किया था। लेकिन प्रश्न था कि क्या सचमुच अभ्यावेदन के आलोक में तबादला हुआ? अगर अभ्यावेदन के आलोक में तबादला हुआ तो वह कौन राजनीतिक नेता या अपराधी धा जिससे उन्हें खतरा था?
सूचना का अधिकार के तहत मांगा दस्तावेज:-जिले के बहुचर्चित आरटीआई कार्यकर्ता प्रणव कुमार चर्चिल ने मामले को गंभीरता से लेते हुए इससे संबंधित दस्तावेज की मांग सूचना के अधिकार के तहत एसपी व आइजी से कर डाली। लेकिन दोनों अधिकारियों ने गोपनीयता का हवाला देकर दस्तावेज उपलब्ध कराने से इंकार कर दिया। अब सबसे बड़ा सवाल क्या उक्त मामले पर पर्दा डालने में लगे हैं अधिकारी?
क्या है नियम:- सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले में कहा है कि जो दस्तावेज या सूचना संसद या विधानसभा को दिया जा सकता है उसे आप जनता को दिया जा सकता है और शहसूचना के अधिकार के दायरे में आता है। फिर दस्तावेज उपलब्ध कराने से इंकार क्यों? अब मामले को द्वितीय अपील में दायर करने की तैयारी आरंभ कर दी गयी है।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ:- अजय कुमार के मामले में ऐसा पहली बार नहीं हुआ। इसके पूर्व अकबरपुर में लकड़ी कटाई , पत्रकार उत्पीड़न मामले में करायी गयी जांच प्रतिवेदन को भी सार्वजनिक नहीं किया गया जिसकी अपील लम्बित है। अब सबसे बड़ा सवाल आखिर अजय कुमार पर अधिकारियों की मेहरबानी क्यों?

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