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तिलैया (रामायण काल की तमसा)नदी के अस्तित्व पर खतरा, संरक्षण की जरूरत – नवादा |

आधा दर्जन प्रखंडों से गुजरने वाली नदी हो रही मैली, पशुओं के पीने लायक भी नहीं है पानी

रवीन्द्र नाथ भैया |

जिले के सात बरसाती नदियों में से प्रमुख रामायण काल की तमसा आज की तिलैया नदी अपने अस्तित्व बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही है।
आधा दर्जन प्रखंडों से गुजरने वाली तिलैया नदी हर रोज मैली हो रही है। खुद के अस्तित्व को गांव व शहर के कचरा, मैला व अन्य केमिकल्स से मिटाते हुए जनजीवन को स्वच्छता प्रदान कर रही इन सात बरसाती नदियों में से प्रमुख तिलैया नदी की अतीत को सहेजने की दिशा में कोई कारगर पहल नहीं की जा रही है। स्थिति यह है कि आधा दर्जन प्रखंडों के मध्य से गुजरने वाली तिलैया नदी में शहरी व देहाती गंदे नाले समाहित हो रहे हैं , जिससे ये नदी हर रोज मैली हो रही है। लेकिन, सरकारी महकमा को इससे कोई सरोकार नहीं है।
बता दें कि रामायण काल की तमसा नदी, जो की अब तिलैया नदी के नाम से जानी जा रही है। ये नदी अपना अस्तित्व खोती जा रही है। प्राय: नाली के पानी में शौचालय के आउटलेट, नहाने का साबुन व शैंपू के केमिकल्स रहते हैं। इसके कारण इसमें मच्छरों का प्रकोप बढ़ जाता है। पानी में मिथेन, सल्फर, एसिड, कार्बन मोनो आक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड पाये जाते हैं। इसका कुप्रभाव वायु, मिट्टी पर भी पड़ता है। नदियों की मछलियों व आदमी व पशुओं को नुकसान पहुंचता है। तिलैया नदी के स्वच्छ पानी का उपयोग पहले वाशरुम ,फ्लस व कपड़ा धोने, पशु पक्षियों को पिने सहित पानी का उपयोग रोड स्वीपिंग और वाहन धोने में होता है। लेकिन इसका उपयोग अब न तो पीने में हो रहा है और न ही अन्य कार्यों में।
तिलैया नदी को कभी जीवन दायिनी नदी कहा जाता था, जिसका पानी कभी पीने योग्य था। आज उसके अस्तिव पर खतरा मंडरा रहा है। वैसे तो सरकार ने तिलैया नदी सहित अन्य नदी को पुनर्जीवित करने के लिए अभियान चलाकर लाखों रुपये खर्च भी किये, लेकिन सरकार के इन प्रयासों का असर धरातल पर नहीं दिख रहा है।

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