Welcome to KHABRE TV   Click to listen highlighted text! Welcome to KHABRE TV
EntertainmentLife StyleNationalState

नालंदा लिटरेचर फेस्टिवल 2025 के तीसरे दिन भाषा, इतिहास और विचारों पर उत्तर-पूर्व के साथ विशेष फोकस – नालंदा ।

रवि रंजन ।

राजगीर : नालंदा  लिटरेचर फेस्टिवल (NLF) 2025 का तीसरा दिन इतिहास, भाषा, दर्शन और सांस्कृतिक पहचान पर गहन विचार-विमर्श के साथ संपन्न हुआ। इस दिन विद्वानों, लेखकों और श्रोताओं की सक्रिय भागीदारी देखने को मिली।

दिन की शुरुआत बिहार स्कूल ऑफ योग, मुंगेर द्वारा आयोजित योग और ध्यान सत्रों से हुई, जिसने प्रतिभागियों को शांत और सकारात्मक ऊर्जा के साथ दिन शुरू करने का अवसर दिया। इसके बाद “भारतीय इतिहास को भारतीय दृष्टिकोण से पुनः समझना’ विषय पर डॉ. विक्रम संपत की सहभागिता वाला सत्र हुआ। वहीं “हर वर्ड्स, हर वर्ल्ड’ सत्र में भारतीय साहित्य में महिलाओं की भूमिका और उनके योगदान पर चर्चा की गई।

 

कई सत्रों में भाषा को सांस्कृतिक विरासत के वाहक के रूप में देखा गया। “भाषा एक विरासत के रूप में: कैसे क्षेत्रीय भाषाएँ हमारी सांस्कृतिक जड़ों की रक्षा करती हैं’ सत्र में प्रो. गणेश नारायणदास देवी ने अपने विचार साझा किए। “दुनिया में नालंदा की भावना’ सत्र में नालंदा की बौद्धिक परंपरा और उसकी वैश्विक प्रासंगिकता पर चर्चा हुई। उत्तर-पूर्वी राज्यों के शिलालेखों और चंपारण सत्याग्रह के माध्यम से गांधी दर्शन पर विचारों ने ऐतिहासिक विमर्श को और समृद्ध किया।

दोपहर के सत्रों में भारत की भाषाई विविधता, विशेष रूप से उत्तर-पूर्व भारत की भाषाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया। सात बहनों की भाषाएँ, जनजातीय भाषाओं का महत्व और भारतीय भाषाओं से अंग्रेज़ी तथा अंग्रेज़ी से भारतीय भाषाओं में अनुवाद की बदलती प्रक्रियाओं पर चर्चा हुई। ‘उर्दू: अतीत से वर्तमान तक” सत्र में उर्दू भाषा की यात्रा और आज की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला गया। वहीं देवदत्त पटनायक के साथ “मौखिक साहित्य” सत्र में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही कहानी कहने की परंपराओं की शक्ति को समझा गया।

“भारतीय इतिहास को भारतीय दृष्टिकोण से पुनः समझना” सत्र में, जिसका संचालन सुश्री अमी गणात्रा ने किया और जिसमें इतिहासकार डॉ. विक्रम संपत शामिल थे, भारतीय इतिहास को स्वदेशी दृष्टि से देखने की आवश्यकता पर जोर दिया गया। डॉ. संपत ने कहा कि इतिहास किसी भी सभ्यता की आत्म-छवि को आकार देता है और औपनिवेशिक काल से चली आ रही विकृत धारणाएँ आज भी हमारी सोच को प्रभावित कर रही हैं। उन्होंने खोए हुए शिलालेखों, अधूरे ग्रंथों, भाषाई जटिलताओं और अनुवाद की कठिनाइयों का उल्लेख किया। साथ ही धोलावीरा, राखीगढ़ी और सिनौली जैसे पुरातात्विक स्थलों के नए निष्कर्षों की भी चर्चा की। सुश्री गणात्रा ने कहा कि इतिहास केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं है, बल्कि वर्तमान संदर्भों से भी आकार लेता है, इसलिए तथ्य-आधारित और विविध दृष्टिकोणों वाला इतिहास जरूरी है।

“दुनिया में नालंदा की भावना” सत्र का संचालन प्रो. सिद्धार्थ सिंह ने किया, जिसमें पद्म श्री से सम्मानित नृत्यांगना और विदुषी सुश्री शोभना नारायण तथा अभिनेता श्री अखिलेंद्र मिश्रा शामिल हुए। वक्ताओं ने नालंदा को संवाद, सह-अस्तित्व और बहुलता की परंपरा के रूप में प्रस्तुत किया। सुश्री नारायण ने संगीत, नृत्य और साहित्य के उदाहरणों से बताया कि एक ही शब्द या भावना के कई अर्थ हो सकते हैं। श्री मिश्रा ने भारतीय दार्शनिक और भाषाई परंपराओं, महेश्वर सूत्रों और भाषा, विज्ञान व आध्यात्मिकता के आपसी संबंधों पर प्रकाश डाला।

“उत्तर-पूर्वी राज्यों के शिलालेख सत्र में, जिसका संचालन डॉ. ज़ेडी लालमंगइहज़ौवा ने किया, डॉ. मधुमिता बरबोरा और श्री अरूप कुमार दत्ता ने अपने विचार रखे। इस सत्र में बताया गया कि शिलालेख उत्तर-पूर्व भारत, विशेष रूप से असम के राजनीतिक, धार्मिक और भाषाई इतिहास को समझने का महत्वपूर्ण स्रोत हैं। वक्ताओं ने विभिन्न राजवंशों, लिपियों और भाषाओं के विकास के साथ-साथ लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

“मौखिक साहित्य’ सत्र में, जिसका संचालन सुश्री वंदना राग ने किया, प्रसिद्ध मिथकविद् देवदत्त पटनायक ने कहानी कहने की परंपरा को मानव संस्कृति की नींव बताया। उन्होंने कहा कि कहानियों केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि मूल्य, विश्वास और सामाजिक ढांचे को आगे बढ़ाने का माध्यम हैं। रामायण और विश्व की अन्य मिथक कथाओं के उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि कहानियाँ समय, स्थान और समाज के अनुसार बदलती रहती हैं और हर पीढ़ी को नए अर्थ देती हैं।

शाम का समापन पद्म विभूषण डॉ. सोनल मानसिंह की मनमोहक सांस्कृतिक प्रस्तुति और रात्रिभोज के साथ हुआ। यह प्रस्तुति कथ्य, शास्त्रीय नृत्य और दर्शन का सुंदर संगम थी।

जैसे-जैसे महोत्सव अपने अंतिम दिन की ओर बढ़ रहा है, नालंदा लिटरेचर फेस्टिवल 2025 एक बार फिर नालंदा की उस शाश्वत विरासत को सशक्त रूप से प्रस्तुत कर रहा है, जो विचारों, संवाद और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का केंद्र रही है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Click to listen highlighted text!