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भारत की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता का उत्सव – राजगीर ।

नालंदा लिटरेचर फेस्टिवल का दूसरा दिन

  1. रवि रंजन ।

नालंदा  : नालंदा लिटरेचर फेस्टिवल 2025 के दूसरे दिन साहित्य, भाषाओं और संस्कृति की समृद्ध परंपराओं पर केंद्रित सत्रों ने प्रतिभागियों को गहराई से जोड़ा और राजगीर को एक बार फिर बौद्धिक एवं सांस्कृतिक संवाद के केंद्र के रूप में स्थापित किया।

दिन की शुरुआत बिहार स्कूल ऑफ योग, मुंगेर द्वारा आयोजित योग और ध्यान सत्रों से हुई, जिसने प्रतिनिधियों को शांत और सकारात्मक ऊर्जा के साथ दिन की शुरुआत करने का अवसर दिया। डॉ. सोनल मानसिंह, डॉ. शशि थरूर, श्री अदूर गोपालकृष्णन और प्रो. सचिन चतुर्वेदी जैसे प्रतिष्ठित वक्ताओं ने संवादात्मक सत्रों में समकालीन समाज में साहित्य की भूमिका और भारत की बहुसांस्कृतिक पहचान पर विचार साझा किए।

क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों पर केंद्रित सत्रों में बज्जिका, मगही, अंगिका, मैथिली और भोजपुरी जैसी भाषाओं के संरक्षण और पुनर्जीवन पर चर्चा हुई। वहीं तकनीक, सिनेमा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित सत्रों में डिजिटल युग में भाषा की बदलती भूमिका पर विचार किया गया। “वर्ड्स टू स्क्रीन”, “एल्गोरिद्म्स टू एक्सेंट्स” और “फ्रॉम फोकलोर टू फ्यूचर” जैसे सत्रों ने भारत की भाषाई विविधता को समग्र दृष्टि से प्रस्तुत किया।

दिन का एक प्रमुख सत्र डॉ. शशि थरूर और प्रो. सचिन चतुर्वेदी के बीच संवाद का रहा, जिसमें डॉ. थरूर ने नालंदा की वैश्विक शैक्षणिक विरासत पर प्रकाश डालते हुए भारतीय उच्च शिक्षा की वर्तमान चुनौतियों पर भी बात की। उन्होंने आईआईटी जैसे संस्थानों की सराहना करते हुए समग्र गुणवत्ता सुधार की आवश्यकता पर बल दिया और राष्ट्रीय शिक्षा नीति को एक परामर्शात्मक सुधार बताया। साथ ही उन्होंने एआई युग में आलोचनात्मक सोच, उद्योग अकादमिक सहयोग और अनुकूलन क्षमता को आवश्यक बताया।

“शब्दों की सोशल फैक्ट्री” सत्र में भाषा, समाज और एआई के संबंधों पर चर्चा हुई। वक्ताओं ने तकनीक को मानव-केंद्रित और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। एआई की सीमाओं, भाषाई विविधता पर इसके प्रभाव और नैतिक चिंताओं पर गंभीर विचार रखे गए।

पुस्तक समीक्षा सत्र हाउ इंडिया स्केल्ड माउंट जी20: द इनसाइड स्टोरी ऑफ द जी20 प्रेसिडेंसी में श्री अमिताभ कांत ने प्रो. सुनैना सिंह के साथ संवाद में भारत की जी 20 अध्यक्षता के अनुभव साझा किए। उन्होंने भारत की वैश्विक प्रगति को युवा शक्ति, तकनीकी विकास और डिजिटल बुनियादी ढांचे से जोड़ा और इस दशक को भारत के लिए निर्णायक बताया।

महोत्सव में फिल्म अर्थ नायक का मुहूर्त लॉन्च भी हुआ, जिसने समकालीन सामाजिक और सांस्कृतिक विषयों पर आधारित सिनेमा से नालंदा लिटरेचर फेस्टिवल के जुड़ाव को दर्शाया।

“द लॉस्ट लव’ सत्र में बिहार की क्षेत्रीय भाषाओं के पुनर्जीवन पर चर्चा हुई। वक्ताओं ने मातृभाषा में शिक्षा के महत्व, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 से मिलने वाले अवसरों और तकनीक व एआई की भूमिका पर प्रकाश डाला।

प्रसिद्ध फिल्मकार श्री अदूर गोपालकृष्णन ने एक संवाद सत्र में साहित्य, रंगमंच और सिनेमा के गहरे संबंधों पर अपने अनुभव साझा किए और कहा कि सिनेमा को मनोरंजन से आगे बढ़कर जीवन की सच्चाइयों को दर्शाना चाहिए।

“वईस टू स्क्रीन” सत्र में साहित्य और क्षेत्रीय भाषाओं को सिनेमा में ढालने की चुनौतियों पर चर्चा हुई। वक्ताओं ने रचनात्मक ईमानदारी, बाज़ार की मांग और भाषाई संवेदनशीलता के संतुलन पर जोर दिया।

“राइटिंग इंडिया इन इंग्लिश’ सत्र में अंग्रेज़ी भाषा के माध्यम से भारत की विविध कहानियों को अभिव्यक्त करने पर विचारहुआ। वक्ताओं ने कहा कि अंग्रेज़ी भारत की बहुभाषी परंपरा की पूरक होनी चाहिए, न कि उसका स्थान लेने वाली।

दिन का समापन ए ज़िगज़ंग माइंड पुस्तक समीक्षा सत्र से हुआ, जिसमें डॉ. सोनल मानसिंह और डॉ. विक्रम संपत के बीच संवाद हुआ। डॉ. मानसिंह ने रचनात्मक जिज्ञासा, अनुशासन और भारतीय दर्शन के महत्व पर प्रकाश डाला।

इसके अलावा विभिन्न पुस्तक समीक्षाएं और विमोचन हुए, जिनमें श्री अमिताभ कांत, डॉ. सोनल मानसिंह, डॉ. विक्रम संपत और शोभना नारायण की कृतियाँ शामिल रहीं। सांस्कृतिक संध्या “जश्न-ए-महफिल” के साथ दिन का समापन हुआ, जिसमें शास्त्रीय और लोक कलाओं का सुंदर संगम देखने को मिला।

आगामी दिनों में और भी साहित्यिक सत्रों, कार्यशालाओं और प्रस्तुतियों के साथ नालंदा लिटरेचर फेस्टिवल भारत की भाषाई समृद्धि और सांस्कृतिक विरासत का उत्सव मनाता रहेगा।

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